भारतीय शेयर बाजार में गिरावट और इसके कारण
5 नवंबर, 2024 को भारतीय शेयर बाजार में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई। बीएसई सेंसेक्स 618.13 अंक की गिरावट के साथ 79,400.37 पर बंद हुआ। इसी तरह, निफ्टी 50, 202.75 अंक नीचे आकर 24,198.10 पर समाप्त हुआ। इस गिरावट का मुख्य कारण वैश्विक संकेतों की कमजोरी और बाजार में लगातार बिकवाली का दबाव रहा। बाजार में यह गिरावट आईटी और बैंकिंग सेक्टरों में मुख्य रूप से दिखाई दी।
वैश्विक संकेतों के प्रभाव
भारतीय शेयर बाजार के कमजोर होने का एक प्रमुख कारण कमजोर वैश्विक संकेत थे। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा हाल ही में की गई ब्याज दरों में कटौती और चीन के केंद्रीय बैंक के द्वारा उठाए गए प्रोत्साहन उपाय बाजार को खास समर्थन नहीं दे सके। इसकी वजह से निवेशकों का विश्वास कम हुआ और उन्होंने बेचने का रास्ता अपनाया। फेडरेट का यह निर्णय और उसकी वैश्विक प्रतिक्रियाएं बाजार में तनाव का कारण बनीं, जिससे भारतीय बाजार भी अछूता नहीं रहा।
बिकवाली का दबाव और बाजार का प्रदर्शन
बाजार में बिकवाली के दबाव का सबसे ज्यादा असर आईटी और बैंकिंग सेक्टर पर देखा गया। बैंकों की कमजोर वित्तीय स्थिति और आईटी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई। इसके अलावा, निफ्टी 500 और बीएसई मिडकैप जैसी अन्य सूचकांकों में भी महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई। निफ्टी 500 सूचकांक 0.65% गिरकर 22,664.55 पर बंद हुआ जबकि बीएसई मिडकैप 0.17% घटकर 48,610.25 पर आ गया।
विश्लेषकों की राय
जीओजित फाइनेंशियल सर्विसेज के रिसर्च प्रमुख विनोद नायर का कहना है कि बाजार में वर्तमान में बेयरिश माहौल है और निवेशकों का रुख नकारात्मक है। यह गिरावट मुख्य रूप से निवेशकों के मनोबल में कमज़ोरी और वैश्विक आर्थिक संकेतों के प्रति प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप हुई। निवेशकों को इस गिरती हुई स्थिति में सतर्क रहने की आवश्यकता है।
आगे की राह
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि बाजार की यह गिरावट अस्थायी हो सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियादी विशेषताएं मजबूत हैं और निवेशकों को धैर्य रखना चाहिए। वैश्विक आर्थिक प्रक्रिया में सकारात्मक परिवर्तन भारतीय बाजार के लिए हितकर हो सकते हैं। निवेशकों को दीर्घकालिक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि वे विवेकपूर्ण निर्णय लें।
चीन और अमेरिकी नीतियों का असर
Chinese central bank द्वारा घोषित राहत उपाय और अमेरिकी फेड की ब्याज दरों में कमी भारतीय बाजार को बहुत अधिक समर्थन नहीं दे सके। हालांकि, इस तरह की नीतियां वैश्विक बाजार में उत्तेजना पैदा कर सकती हैं लेकिन भारतीय निवेशकों को जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेना चाहिए। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार यह समय सही सोच और योजना बनाकर निवेश करने का है।
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले दिनों में वैश्विक आर्थिक नीतियों का भारतीय बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा। साथ ही, भारतीय सरकार द्वारा आर्थिक सुधार और नीति में सुधार के कदम अंततः बाजार को पुनः स्थिरता प्रदान कर सकते हैं।