इज़रायल का यमन पर पहला हमला
21 जुलाई 2024 को इज़रायल ने यमन में हौथी विद्रोहियों पर एक महत्वपूर्ण सैन्य हमला किया। यह पहली बार है जब इज़रायल ने यमन में किसी भी सैन्य अभियान को अंजाम दिया है। इस हमले का उद्देश्य था यमन के होदेइदाह बंदरगाह पर हमला करना, जहां से हौथी विद्रोही ऑपरेट कर रहे थे. यह हमला एक प्रतिक्रियास्वरूप था क्योंकि कुछ ही दिनों पहले हौथी विद्रोहियों ने तेल अवीव पर ड्रोन हमला किया था, जिसमें कई निर्दोष नागरिकों की जान गई और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ।
हौथी विद्रोहियों और इज़रायल के बीच बढ़ता तनाव
हौथी विद्रोही, जिन्हें ईरान का समर्थन प्राप्त है, यमन में लंबे समय से चल रहे गृह युद्ध में शामिल हैं। पिछले कुछ समय से, वे इज़रायल के खिलाफ भी सक्रिय हो गए हैं, मुख्यत: गाजा में हो रहे संघर्ष के चलते। इस बार उनके द्वारा तेल अवीव पर किए गए ड्रोन हमले ने इज़रायल को यमन में अपना पहला सैन्य अभियान शुरू करने पर मजबूर कर दिया।
होदेइदाह पर हमला और उसके परिणाम
इज़रायल के द्वारा यमन के होदेइदाह बंदरगाह पर किए गए इस हमले से न केवल कई सांठगांठीय लोग घायल हुए, बल्कि बंदरगाह की महत्वपूर्ण अधोसंरचना को भी काफी नुकसान पहुंचा है। इस बंदरगाह को हौथी विद्रोही अपने सैन्य कार्यों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र मानते हैं, जहां से वे ईरान से प्राप्त होने वाली हथियारों की आपूर्ति को संचालित करते हैं।
प्रधानमंत्री नेतन्याहू का वक्तव्य
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस हमले को न्यायोचित ठहराया और आरोप लगाया कि ईरान होदेइदाह बंदरगाह का उपयोग हौथी विद्रोहियों को हथियार सप्लाई करने के लिए कर रहा है। उन्होने कहा कि जब तक इज़रायल की सुरक्षा खतरे में है, तब तक इज़रायल इस तरह के हमले करने से पीछे नहीं हटेगा।
लंबे समय तक संघर्ष की तैयारी
हौथी विद्रोहियों ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वे इज़रायल के साथ लंबे समय तक संघर्ष के लिए तैयार हैं। उनका कहना है कि इज़रायल के हमले ने उन्हें और अधिक दृढ़ बना दिया है और वे किसी भी प्रयास के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया देंगे। यह स्थिति ना केवल यमन और इज़रायल के बीच संघर्ष को बढ़ा सकती है, बल्कि इसकी चिंगारी पूरी मध्य पूर्व क्षेत्र में फैल सकती है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंताएँ
इस स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी नजर टिकी हुई है। सभी देशों ने क्षेत्र में स्थिति को बिगड़ने से रोकने के लिए शांति और स्थायित्व की अपील की है। यदि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो यह पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा संकट बन सकता है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इस दिशा में कई प्रयास शुरू कर दिए हैं ताकि जल्द से जल्द कोई शांतिपूर्ण समाधान निकाला जा सके।
सीधी टकराव की संभावना और इसके प्रभाव
जो स्थिति बन रही है, उसमें यह मुमकिन है कि इज़रायल और ईरान के बीच सीधी टकराव हो सकती है। ईरान पहले से ही क्षेत्र में कई सैन्य और पॉलिटिकल ग्रुप्स का समर्थन कर रहा है, जिनमें हौथी विद्रोही और हीज़्बुल्लाह शामिल हैं। यदि सही समय पर कोई समाधान नहीं निकाला गया, तो यह टकराव बहुत ही गंभीर रूप ले सकता है और उसके प्रभाव केवल यमन और इज़रायल तक ही सीमित नहीं रहेंगे।
नागरिकों पर प्रभाव
इस संघर्ष का सबसे बड़ा प्रभाव आम नागरिकों पर पड़ रहा है, जिन्होंने पहले ही बहुत कुछ सहा है। यमन में पहले ही मानवीय संकट गहराता जा रहा है और इस नए संघर्ष ने वहां की स्थिति को और भी तनावपूर्ण बना दिया है। लोगों को रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है और उन्हें कोई सुरक्षित आश्रय नहीं मिल रहा है।
भविष्य की संभावनाएँ
अभी यह कहना मुश्किल है कि यह संघर्ष कब और कैसे खत्म होगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि यदि सभी पक्ष एक दूसरे को समझने और शांतिपूर्ण बातचीत के लिए तैयार नहीं होते, तो स्थिति और भी बिगड़ सकती है। ऐसे में, सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों और संस्थाओं को मिलकर इस दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि यथाशीघ्र शांति और स्थायित्व बहाल हो सके।
यह घटना केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं है, बल्कि इसकी पुकार पूरी दुनिया ने सुनी है। समय की जरूरत है कि सही कदम उठाए जाएं और मानव जीवन और संपत्ति की रक्षा की जाए।