अक्तू॰, 7 2025
जब मारि ई. ब्रंको, फ्रेड रैम्सडेल और शिमोन साकागुची को नोबेल असेंबली ने 6 अक्टूबर 2025 को नोबेल मेडिसिन पुरस्कारस्टॉकहोम में घोषित किया, तो विज्ञान जगत में हलचल मच गई। इन वैज्ञानिकों ने इम्यून टॉलरेंस के बारे में ऐसी खोजें पेश कीं जो शरीर को अपने खुद के ऊतकों पर हमला करने से रोकती हैं। स्वीडन की राजधानी में इस घटना को थॉमस पर्मन, सचिव जनरल, ने दो भाषाओं – स्वीडिश और अंग्रेज़ी में घोषित किया।
पृष्ठभूमि: इम्यून टॉलरेंस की खोज की शुरुआती कहानी
पहले लोग मानते थे कि प्रतिरक्षा सहिष्णुता सिर्फ थाइमस में निर्मित “सेंट्रल टॉलरेंस” के कारण होती है। 1995 में शिमोन साकागुची ने इस धरोहर को चुनौती दी। उन्होंने प्रयोगशाला में एक नई कोशिका वर्ग – रेगुलेटरी T‑सेल (Treg) – को पहचाना, जो शरीर के अपने खुद के टिश्यू को पहचान कर उन्हें बचाता है। इस खोज ने पूरे इम्यूनोलॉजी के मानचित्र को उलटा‑पलटा कर दिया।
अगले दो दशकों में फ्रेड रैम्सडेल ने “स्कर्फी माउस” मॉडल पर काम किया। उनका काम जीन‑मैपिंग दिखाता था कि गलत जीन कैसे Treg कोशिकाओं की कार्यक्षमता को बिगाड़ते हैं, जिससे स्व-आक्रमण बढ़ता है। इसी क्रम में मारि ई. ब्रंको ने सेलटेक साइंटिफिक (वॉशिंगटन) में CD4+CD25+FOXP3+ मार्कर की पहचान की, जिससे Treg को पहचानना आसान हो गया।
खोजों का विस्तार: कैसे Treg ने प्रतिरक्षा के संतुलन को बदला
इन तीनों वैज्ञानिकों के सहयोग से एक स्पष्ट तस्वीर उभरी: रेगुलेटरी T‑सेल्स शरीर के भीतर एक “सुरक्षा गार्ड” की तरह काम करती हैं, जो अतिव्यापी प्रतिरक्षा को रोकती हैं। उनका कार्य दो‑लेयर है – एक तरफ खुद के प्रोटीन को पहचानना, दूसरी तरफ खतरनाक रोगजनकों को नष्ट करना।
सेलटेक से प्राप्त डेटा ने दिखाया कि यदि Treg कोशिकाओं को अक्षम किया जाए, तो lupus, type‑1 diabetes, और multiple sclerosis जैसी ऑटोइम्यून बीमारियाँ जलसे बन सकती हैं। वहीं, कैंसर ट्यूमर अक्सर इन कोशिकाओं को अपनी मदद से ‘छुपाते’ हैं, जिससे इम्यून सिस्टम ट्यूमर को नहीं देख पाता। इस द्वैध भूमिका ने चिकित्सा जगत को दो नई राहें दीं: ऑटोइम्यून रोगों के लिए Treg‑आधारित थेरेपी और कैंसर में Treg को बाधित करके इम्यून‑चेकपॉइंट को टकराव देना।
नोबेल असेंबली और करोलिंस्का इंस्टिट्यूट की प्रतिक्रिया
नोबेल असेंबली के अध्यक्ष ऑले केम्पे ने कहा, “इन खोजों ने यह साबित कर दिया है कि हम अब केवल बीमारी की पहचान नहीं, बल्कि उसकी मूल प्रक्रिया को भी समझ रहे हैं।” उन्होंने यह भी जोड़ते हुए कहा कि यह शोध “एक सदी‑पुरानी पहेली का समाधान है”।
करोलिंस्का इंस्टिट्यूट ने घोषणा के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि इस पुरस्कार से आने वाले पाँच सालों में प्रतिरक्षा‑संबंधी अनुसंधान में निवेश में 30 % की वृद्धि हो सकती है। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जेन्ना लिंडेस भी मानती हैं कि “इम्यून टॉलरेंस के मैकेनिज़्म को समझना हमारे भविष्य के एंटी‑कैंसर दवाओं का आधार बनेगा।”
मेडिकल इम्पैक्ट: रोगियों के जीवन में क्या बदलाव आएगा?
प्रस्तावित Treg‑बेस्ड थेरेपी अभी क्लिनिकल ट्रायल‑फेज 1 में हैं, लेकिन प्रारंभिक परिणाम आशाजनक दिख रहे हैं। lupus के एक समूह में टैम्पोंडिक‑डोज़ Treg इन्फ्यूजन से रोग की सक्रियता में 45 % की कमी आई। इसी तरह, type‑1 diabetes के शुरुआती रोगियों में इन्सुलिन की आवश्यकता में उल्लेखनीय कमी देखी गई।
कैंसर में, शोधकर्ता अब “Treg डिप्लीशन” रणनीति पर प्रयोग कर रहे हैं, जिससे इम्यून‑सिस्टम ट्यूमर को पहचान कर नष्ट कर सके। इस दिशा में अब तक की सबसे बड़ी सफलता पेटीट कैंसर के मरीजों में दो‑तीन महीने का जीवितावधि बढ़ाना रहा है।
आगे की राह: आने वाले सालों में क्या उम्मीद कर सकते हैं?
भविष्य की योजना में सबसे बड़ा लक्ष्य है “रिप्रोग्रामेबल” Treg की तैयारी, जिससे डॉक्टर रोगी की व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार इम्यून टॉलरेंस को ट्यून कर सकें। इसके साथ ही, जेनेटिक एडिटिंग (CRISPR‑Cas9) के माध्यम से “स्कर्फी‑जीन” को सुधारना भी जल्द ही संभव हो सकता है।
वैश्विक स्तर पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस खोज को “स्वास्थ्य सुरक्षा के एक नए युग” का हिस्सा माना है। यदि अगले पाँच सालों में क्लिनिकल परिणाम स्थिर रहे, तो लाखों ऑटोइम्यून रोगी और कैंसर रोगी को लाभ मिल सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
नोबेल पुरस्कार से मरीजों को क्या सीधे लाभ मिलेगा?
इन शोधों के आधार पर विकसित नई दवाइयाँ ऑटोइम्यून रोगों के लक्षणों को कम कर सकती हैं, जैसे lupus में दर्द और सूजन को 40 % तक घटाना। कैंसर में, Treg‑डिप्लीशन थैरेपी ट्यूमर को इम्यून‑सिस्टम से पहचानाने में मदद करेगी, जिससे रोगी की बचे रहने की संभावना बढ़ेगी।
शिमोन साकागुची की 1995 की खोज क्यों इतनी महत्वपूर्ण थी?
उस समय अधिकांश वैज्ञानिक मानते थे कि टॉलरेंस केवल थाइमस में विकसित होती है। साकागुची ने प्रकट किया कि शरीर के बाहर भी रेगुलेटरी T‑सेल्स मौजूद हैं, जो सीधे टिश्यू को सुरक्षित रखती हैं। यह नया सिद्धांत पूरी इम्यूनोलॉजिकल मॉडल को बदल गया।
क्या इस खोज से कैंसर के इलाज में नई दवाइयाँ बनेंगी?
हाँ, कई फार्मा कंपनियों ने Treg‑डिप्लीशन को लक्षित करते हुए क्लिनिकल ट्रायल शुरू किए हैं। शुरुआती परिणाम दिखाते हैं कि ट्यूमर की वृद्धि गति में उल्लेखनीय गिरावट आयी है, जिससे भविष्य में अधिक प्रभावी इम्यून‑थेरेपी की आशा है।
भविष्य में इस शोध का कौन‑सा पहलू सबसे अधिक महत्व रखेगा?
रिप्रोग्रामेबल Treg की विकसित करना, जिससे डॉक्टर रोगी‑विशिष्ट इम्यून टॉलरेंस को कस्टमाइज़ कर सकें, भविष्य का प्रमुख लक्ष्य है। साथ ही जीन‑एडिटिंग तकनीक से स्कर्फी‑जीन की सुधार भी संभावित है।
नोबेल पुरस्कार के बाद इन वैज्ञानिकों की आगे की योजनाएँ क्या हैं?
ब्रंको की टीम सेलटेक साइंटिफिक में नई Treg‑थेरपी की क्लिनिकल परीक्षणों को तेज़ी से आगे बढ़ा रही है। रैम्सडेल इम्यून‑जेनोमिक डेटा बेस बनाते हुए विभिन्न रोगियों में जीन‑वैरिएशन की पहचान पर काम कर रहे हैं। साकागुची अब युवा वैज्ञानिकों को शिक्षण एवं मार्गदर्शन देने में लगे हैं।
Sunil Kunders
अक्तूबर 7, 2025 AT 20:53यह नोबेल पुरस्कार न केवल इम्यूनोलॉजी के दार्शनिक मंच पर एक नया अध्याय स्थापित करता है, बल्कि वैज्ञानिक समुदाय में दूरस्थ विचारों के पुनर्मूल्यांकन को भी प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार के शोध को समझना सरल नहीं है, इसलिए हम सबको इस बौद्धिक यात्रा में धैर्य रखना चाहिए। T‑सेल्स के नियमन के बारे में अब तक के निष्कर्ष बेजोड़ हैं, और यह भविष्य की चिकित्सा रणनीतियों को दिशा देंगे। जबकि कई लोग इसे सिर्फ़ एक और पुरस्कार मान सकते हैं, वास्तव में यह मानव शरीर के आत्मरक्षा तंत्र की गहन समझ को दर्शाता है।
suraj jadhao
अक्तूबर 13, 2025 AT 15:46वाह क्या शानदार खबर है! 🎉 नोबेल विजेताओं ने इम्यून टॉलरेंस को नई रोशनी में पेश किया है, इससे हमें आशा की चमक दिख रही है 😊। इस खोज से ऑटोइम्यून रोगों के इलाज में नई संभावनाएँ खुलेंगी, और हमारे स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी। चलो इस सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ते रहें और वैज्ञानिकों को उनका समर्थन देते रहें! 🚀
Agni Gendhing
अक्तूबर 19, 2025 AT 10:40ये सब तो एलियन की कोई गुप्त परियोजना लगती है???!!??
Jay Baksh
अक्तूबर 25, 2025 AT 05:33क्या बात है, अब तो हमारे देश की विज्ञान भी चमक रही है! लेकिन मैं कहूँगा, हमें और भी अधिक अपना स्वाभिमान दिखाना चाहिए। इस प्रकार के सम्मान को देखकर गर्व महसूस होता है, पर साथ ही यह भी याद रखें कि हमारी राष्ट्रीय आरोग्य नीतियों को भी मजबूत बनाना है।
Ramesh Kumar V G
अक्तूबर 31, 2025 AT 00:26विदेशी वैज्ञानिकों की उपलब्धियों को देखना हमेशा प्रेरणादायक होता है। यह शोध हमारे इम्यून सिस्टम की मूल समझ को गहरा करता है।
Gowthaman Ramasamy
नवंबर 5, 2025 AT 19:20पहले के कमेंट में उल्लेखित बिंदु बेहद महत्वपूर्ण हैं; विशेष रूप से T‑reg की पहचान की प्रक्रिया में FOXP3 मार्कर का योगदान उल्लेखनीय है। क्लिनिकल ट्रायल में अब तक के परिणाम दर्शाते हैं कि रोगियों की जीवन गुणवत्ता में निरन्तर सुधार हो रहा है। इस प्रकार के डेटा को राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्थित करने से आगे के अनुसंधान को गति मिलेगी। 😊
Navendu Sinha
नवंबर 11, 2025 AT 14:13इम्यून टॉलरेंस के संदर्भ में हमारी समझ अब एक नयी दृष्टि प्राप्त कर रही है। पहले केवल थाइमस‑केन्द्रित सेंट्रल टॉलरेंस पर ही भरोसा किया जाता था, परन्तु अब रेगुलेटरी T‑सेल्स की महत्वपूर्ण भूमिका स्पष्ट हो गई है। शिमोन साकागुची की 1995 की खोज ने यह सिद्ध किया कि टिश्यू‑सेल्स अपने आप को पहचानते हैं और स्वयं के खिलाफ आक्रमण को रोकते हैं। फ्रेड रैम्सडेल ने इस प्रक्रिया को जीन‑मैपिंग के माध्यम से उजागर किया, जिससे स्कर्फी माउस मॉडल के माध्यम से वह जीन टैग निर्धारित कर सके जो T‑reg को विफल बनाते हैं। मारि ब्रंको ने CD4+CD25+FOXP3+ मार्कर की पहचान करके इन कोशिकाओं को बायो‑मार्कर के रूप में स्थापित किया। ये तीनों पहलुओं की संगतता ने हमें यह समझने की ओर अग्रसर किया कि ऑटोइम्यून रोगों का मूल कारण क्या हो सकता है। अब यह स्पष्ट है कि यदि T‑reg कार्यक्षमता में कमी आती है, तो लुपस या टाइप‑1 डायबिटीज जैसी बीमारियाँ प्रकट हो सकती हैं। उसी प्रकार, कैंसर कोशिकाएँ इन T‑reg को “छिपा” लेती हैं, जिससे इम्यून सिस्टम ट्यूमर को पहचान नहीं पाता। इस द्वैध भूमिका ने हमें दो नई चिकित्सीय रणनीतियों की ओर प्रेरित किया: ट्यूनिंग T‑reg‑आधारित थेरेपी और उनके निष्क्रियकरण द्वारा इम्यून‑चेकपॉइंट को टक्कर देना। क्लिनिकल ट्रायल‑फ़ेज 1 में अभी प्रारम्भिक परिणाम आशाजनक प्रतीत हो रहे हैं; लुपस रोगियों में सक्रियता में 45% की कमी दिखी है। टाइप‑1 डायबिटीज में इन्सुलिन की आवश्यकता में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। कैंसर के क्षेत्र में, नयी रणनीति ने पेटीट ट्यूमर रोगियों की जीवितावधि को दो‑तीन महीने तक बढ़ाया है। भविष्य में, “रिप्रोग्रामेबल” T‑reg की तैयारी हमें रोगी‑विशिष्ट इम्यून टॉलरेंस को कस्टमाइज़ करने की अनुमति देगी। साथ ही CRISPR‑Cas9 द्वारा स्कर्फी‑जीन की सुधारना भी जल्द ही संभव हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस खोज को स्वास्थ्य सुरक्षा के नए युग के रूप में माना है, जिससे आगामी पाँच वर्षों में लाखों रोगियों को लाभ मिल सकता है। इस सम्पूर्ण प्रगति को देखते हुए, हमें शोध, निवेश और नैतिकता के बीच संतुलन बनाते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
reshveen10 raj
नवंबर 17, 2025 AT 09:06बहुत गहन विश्लेषण है, इस दिशा में आगे की खोजें जरूर सफल होंगी।