सुप्रीम कोर्ट वेस्ट बंगाल सरकार की ओबीसी स्टेटस रद्द करने के फैसले संबंधी याचिका पर सुनवाई करेगा अग॰, 20 2024

सुप्रीम कोर्ट वेस्ट बंगाल सरकार की याचिका पर करेगा सुनवाई

भारत का सुप्रीम कोर्ट वेस्ट बंगाल सरकार की उस याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया है जिसमें कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा 77 समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची से हटाने के फैसले को चुनौती दी गई है। इन 77 समुदायों में से 75 मुसलमान हैं। हाई कोर्ट ने अप्रैल से सितंबर 2010 और इसके बाद 2012 में शामिल किए गए 37 अतिरिक्त समुदायों को भी शामिल करने के आदेश को अवैध ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 27 अगस्त को करेगा।

हाई कोर्ट का फैसला और उसकी आलोचना

हाई कोर्ट के फैसले के पहले सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था, जिसमें इन समुदायों को ओबीसी सूची में शामिल करने को अवैध ठहराया गया था और सरकारी नौकरियों में सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन और अनुप्रस्तुति का सर्वेक्षण करने का विवरण मांगा गया था। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड और जस्टिस जे बी पारदीवाला तथा मनोज मिश्रा का बेंच ने वेस्ट बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता आस्था शर्मा को एक सप्ताह के भीतर एफिडेविट दाखिल करने के लिए कहा है जिसमें इन समुदायों को ओबीसी सूची में शामिल करने की प्रक्रिया का विवरण हो।

हाई कोर्ट द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत न करने की आलोचना

हाई कोर्ट ने वेस्ट बंगाल बैकवर्ड क्लास कमीशन की भी आलोचना की थी जो एक रिटायर्ड हाई कोर्ट चीफ जस्टिस के अध्यक्षता में थी, क्योंकि उसने इन समुदायों को ओबीसी सूची में शामिल करने के समर्थन में कोई डेटा प्रस्तुत नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को स्पष्ट करने के लिए कहा है कि उन सर्वेक्षणों की प्रकृति क्या थी जिसने इन समुदायों की सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में उनकी अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का निष्कर्ष निकाला।

मामले को लेकर विभिन्न अधिवक्ताओं की प्रतिक्रियाएं

इस मामले ने व्यापक ध्यान आकर्षित किया है और सीनियर अधिवक्ता इंदिरा जयसिंग ने हाई कोर्ट की आलोचना की, जिसमें उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट ने राज्य में ओबीसी आरक्षणों को ठप्प कर दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि हाई कोर्ट चाहता है कि हर समुदाय को ओबीसी सूची में शामिल करने के लिए राज्य को अलग से कानून पारित करना चाहिए। अन्य सीनियर अधिवक्ताओं ने राज्य सरकार के इस फैसले की आलोचना की और इसे धर्म के आधार पर किया गया 'गंभीर कृत्य' बताया, जो सुप्रीम कोर्ट के 1992 के इंद्रा साहनी फैसले के मूलभूत सिद्धांतों के विरुद्ध है।

इस मामले में सभी दलीलों को अंतिम सुनवाई के दौरान ध्यान में रखा जाएगा, जो अगले सप्ताह होने की संभावना है।

20 टिप्पणि

  • Image placeholder

    Sini Balachandran

    अगस्त 22, 2024 AT 12:00

    क्या हम असल में ओबीसी की बात कर रहे हैं या फिर धर्म के आधार पर आरक्षण की चर्चा? जब तक हम समाज के वास्तविक पिछड़ेपन को नहीं मापेंगे, तब तक ये सब सिर्फ शब्दों का खेल है।
    क्या एक मुस्लिम समुदाय का पिछड़ापन एक हिंदू समुदाय से अलग है? या हम सिर्फ नाम बदल रहे हैं?
    इस तरह के फैसले से वास्तविक गरीबी कभी नहीं दूर होगी।

  • Image placeholder

    Sanjay Mishra

    अगस्त 24, 2024 AT 08:17

    अरे भाई! ये सुप्रीम कोर्ट ने तो बस एक राज्य की ओबीसी सूची को उखाड़ फेंक दिया, जैसे कोई चाय की दुकान का बोर्ड हटा दे! जब राज्य सरकार ने 77 समुदायों को शामिल किया, तो वो भी नहीं जानता था कि ये निर्णय आज इतना बड़ा मुद्दा बन जाएगा।
    अब तो ये बन गया एक राष्ट्रीय ड्रामा - जिसमें हर कोई अपना अधिकार बचाने के लिए तैयार है।
    मैंने तो सोचा था ये आरक्षण का मामला है, पर अब लगता है ये तो भारत के असली चेहरे की छवि है - जहाँ हर नाम के पीछे एक इतिहास छिपा है।

  • Image placeholder

    Ashish Perchani

    अगस्त 26, 2024 AT 02:51

    ये जो हाई कोर्ट ने कहा कि डेटा नहीं है - तो क्या भारत में किसी भी समुदाय के लिए डेटा है? हमने कभी जनगणना की गहराई से जाँच की है? नहीं।
    हम सिर्फ एक आंकड़े के आधार पर फैसले करते हैं - और फिर उसे कानून बना देते हैं।
    इस बार तो वास्तविकता ने चेहरा दिखाया।
    मुस्लिम समुदायों को ओबीसी घोषित करना अवैध है, लेकिन जाट, राजपूत, और अन्य अनुसूचित समुदायों के लिए तो डेटा नहीं भी है, फिर भी आरक्षण चल रहा है।
    ये द्विमानकता का खेल है।
    हम सब एक ही देश में रहते हैं - लेकिन हमारे आरक्षण के नियम अलग-अलग हैं।
    क्या हम इसे न्याय कहेंगे? या फिर ये सिर्फ राजनीति का नाटक है?
    मुझे लगता है हमें एक ऐसा राष्ट्रीय आरक्षण नीति बनानी चाहिए जो वास्तविक सामाजिक पिछड़ेपन पर आधारित हो - न कि धर्म या राजनीति पर।
    और ये सब बातें तब तक बेकार हैं जब तक हम अपने शहरों में भी नहीं जान पाएंगे कि कौन किस तरह गरीब है।

  • Image placeholder

    Dr Dharmendra Singh

    अगस्त 27, 2024 AT 01:21

    हम सब इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि ये फैसला असल में एक अवसर है - एक ऐसा अवसर जिससे हम नए नियम बना सकते हैं।
    मुझे लगता है अगर हम इसे सकारात्मक तरीके से देखें, तो ये भारत के लिए एक बड़ा कदम हो सकता है।
    कोई भी न्यायालय नहीं चाहता कि कोई व्यक्ति अपने अधिकारों से वंचित रहे।
    हमें बस इतना करना है - अपनी आँखें खोलना। 😊

  • Image placeholder

    sameer mulla

    अगस्त 27, 2024 AT 20:40

    अरे भाई! ये सब धर्म के नाम पर आरक्षण का धोखा है! जो लोग अपने आप को गरीब बताते हैं, वो घर में एसी लगाते हैं, बेटी के लिए डिजिटल कैमरा खरीदते हैं - और फिर आरक्षण की मांग करते हैं! 😤
    क्या तुम्हारे घर में कोई बेटा है? तो फिर तुम्हें आरक्षण चाहिए? क्यों? क्योंकि तुम इस देश के नागरिक हो? नहीं भाई - तुम्हें तो बस अपने बेटे को एक अच्छी नौकरी देनी है! ये सब राजनीति का नाटक है! 🤬

  • Image placeholder

    Prakash Sachwani

    अगस्त 28, 2024 AT 12:23

    ओबीसी रद्द हुआ तो क्या हुआ बस देखते रहो

  • Image placeholder

    Pooja Raghu

    अगस्त 29, 2024 AT 00:39

    ये सब एक षड्यंत्र है। अमेरिका ने भारत के आरक्षण को तोड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट को दबाव डाला है। वो चाहते हैं कि हम अपने आप को तोड़ लें। मुस्लिम समुदायों को हटाने का मकसद है - ताकि वो आगे न बढ़ सकें। ये नहीं चाहते कि कोई भी अलग धर्म का व्यक्ति आगे बढ़े। 🕵️‍♀️

  • Image placeholder

    Pooja Yadav

    अगस्त 29, 2024 AT 04:51

    मुझे लगता है अगर हम इसे एक साथ बैठकर समझने की कोशिश करें तो कुछ अच्छा निकल सकता है
    हर किसी की जरूरत अलग है लेकिन हम सब एक ही देश में रहते हैं
    शायद एक नया तरीका ढूंढना चाहिए

  • Image placeholder

    Pooja Prabhakar

    अगस्त 30, 2024 AT 01:11

    इस मामले में सबसे बड़ी गलती ये है कि राज्य सरकार ने बिना किसी वैज्ञानिक डेटा के ओबीसी सूची में 77 समुदायों को शामिल कर दिया। ये आरक्षण का नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ का खेल है।
    हाई कोर्ट ने जो कहा - वो बिल्कुल सही था।
    सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी फैसले के अनुसार - आरक्षण का आधार सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन होना चाहिए - न कि धर्म।
    क्या आपने कभी सोचा है कि एक मुस्लिम व्यक्ति जो डॉक्टर है और अपने बच्चों को इंग्लिश स्कूल में पढ़ा रहा है - उसे ओबीसी आरक्षण की जरूरत क्यों है?
    ये सिर्फ एक धर्मी वर्ग को बनाने की कोशिश है।
    और फिर अधिवक्ता इंदिरा जयसिंग जैसे लोग ये कहते हैं कि ये आरक्षण को ठप्प कर रहा है - लेकिन वो खुद न्याय की बात करते हैं, जबकि वो अपने अधिकारों के लिए बात कर रहे हैं।
    हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि आरक्षण का उद्देश्य असमानता को कम करना है - न कि धर्म के आधार पर विभाजन करना।
    अगर आप एक गरीब हिंदू ब्राह्मण हैं, तो आपको क्या मिलता है? कुछ नहीं।
    लेकिन अगर आप एक धनी मुस्लिम हैं - तो आपको मिलता है आरक्षण।
    ये न्याय है? नहीं। ये अन्याय है।
    हमें एक ऐसी नीति चाहिए जो आर्थिक स्थिति पर आधारित हो - न कि जाति या धर्म पर।
    और अगर आपको लगता है कि ये निर्णय मुस्लिम समुदायों के खिलाफ है - तो आप गलत हैं।
    ये निर्णय न्याय के लिए है - न कि धर्म के लिए।

  • Image placeholder

    Anadi Gupta

    अगस्त 31, 2024 AT 10:35

    अतिरिक्त आरक्षण के आधार पर राज्य सरकार के द्वारा किए गए निर्णयों की वैधता को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अत्यंत आवश्यक और संवैधानिक रूप से उचित है।
    हाई कोर्ट द्वारा आरक्षण के लिए किसी भी वैध आधार के बिना विस्तार किए जाने का निर्णय अवैध और असंगठित है।
    सुप्रीम कोर्ट के द्वारा विशिष्ट डेटा और सामाजिक अध्ययन की आवश्यकता का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत न्याय के सिद्धांतों का सम्मान करता है।
    कोई भी राज्य अपने आप को अनुसूचित जाति या अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण देने का अधिकार नहीं रखता बिना वैज्ञानिक और तथ्यात्मक आधार के।
    इस मामले में जो आर्थिक और शैक्षिक डेटा अनुपलब्ध है - उसके आधार पर निर्णय लेना कानून के खिलाफ है।
    हमें याद रखना चाहिए कि आरक्षण का उद्देश्य समाज में समानता लाना है - न कि राजनीतिक लाभ के लिए विभाजन करना।
    अतः सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली की निरंतरता और वैधता को बरकरार रखने के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है।

  • Image placeholder

    shivani Rajput

    सितंबर 1, 2024 AT 02:56

    ये आरक्षण का मामला तो बस एक झूठी बात है। जाति के आधार पर आरक्षण तो बंद होना चाहिए।
    क्योंकि आज के दौर में जाति का कोई मतलब नहीं।
    केवल आर्थिक स्थिति ही मायने रखती है।
    अगर कोई व्यक्ति गरीब है - तो उसे आरक्षण देना चाहिए।
    अगर वो अमीर है - तो नहीं।
    बाकी सब बस राजनीति का खेल है।
    और जो लोग धर्म के आधार पर आरक्षण की मांग करते हैं - वो अपनी अहंकार की रक्षा कर रहे हैं।
    ये तो बस एक अंधविश्वास है।

  • Image placeholder

    Jaiveer Singh

    सितंबर 1, 2024 AT 23:02

    ये फैसला सही है। भारत के संविधान के तहत आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता।
    हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं।
    अगर ये फैसला नहीं होता - तो ये देश एक धर्मी राष्ट्र बन जाता।
    इसलिए ये फैसला भारत की पहचान को बचाता है।
    हमें अपने नागरिकों को उनके व्यक्तिगत योग्यता के आधार पर देखना चाहिए - न कि उनके धर्म के आधार पर।
    इसलिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत के लिए गौरव का मुद्दा है।

  • Image placeholder

    Arushi Singh

    सितंबर 3, 2024 AT 04:32

    मुझे लगता है कि हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आरक्षण का उद्देश्य क्या है - और क्या ये निर्णय उस उद्देश्य के अनुकूल है।
    हम सब चाहते हैं कि कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता के आधार पर आगे बढ़े।
    लेकिन अगर एक गरीब व्यक्ति को आरक्षण नहीं मिलता - तो वो कैसे आगे बढ़ेगा?
    हमें बस इतना चाहिए - एक ऐसा तरीका जो न्याय करे - न कि बाँटे।
    शायद आर्थिक आधार पर आरक्षण ही सबसे अच्छा रास्ता है।
    मैं आशा करती हूँ कि ये बात सुनी जाएगी। 🙏

  • Image placeholder

    Rajiv Kumar Sharma

    सितंबर 5, 2024 AT 00:06

    सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला तो बस एक निर्णय नहीं - ये एक संकेत है।
    हम लोग अपने आप को जाति के नाम पर बाँट रहे हैं - और फिर आरक्षण के नाम पर लड़ रहे हैं।
    लेकिन असल में किसी को नहीं पता कि ये समुदाय कैसे गरीब हैं।
    क्या एक मुस्लिम परिवार जिसके पास एक दुकान है - वो गरीब है?
    या एक हिंदू परिवार जिसके पास जमीन नहीं है - वो गरीब है?
    हम अपने आप को एक नाम देकर बाँट रहे हैं - और फिर उस नाम के आधार पर अधिकार मांग रहे हैं।
    लेकिन अगर हम असली गरीबी को देखें - तो शायद आरक्षण की जरूरत ही नहीं होगी।
    क्योंकि अगर हम सबको शिक्षा दे दें - तो कोई भी गरीब नहीं रहेगा।
    हमें आरक्षण के बजाय शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए।

  • Image placeholder

    Jagdish Lakhara

    सितंबर 5, 2024 AT 20:57

    सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को वैध और न्यायसंगत माना जाना चाहिए।
    राज्य सरकार द्वारा ओबीसी सूची में समुदायों को शामिल करने की प्रक्रिया में कानूनी तथ्यों का पूर्ण अनुपालन नहीं हुआ।
    इसलिए यह निर्णय संविधान के उद्देश्यों के अनुरूप है।
    हमें इसे एक न्यायिक आवश्यकता के रूप में देखना चाहिए - न कि एक राजनीतिक घटना के रूप में।
    यह भारत के लिए एक न्यायपालिका की शक्ति का प्रदर्शन है।

  • Image placeholder

    Nikita Patel

    सितंबर 6, 2024 AT 07:25

    मैं इस मामले को एक अवसर के रूप में देखता हूँ - एक ऐसा अवसर जिससे हम अपने आरक्षण के तरीके को बदल सकते हैं।
    हम जाति के आधार पर नहीं - बल्कि आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण दे सकते हैं।
    हर गरीब व्यक्ति को एक अवसर चाहिए - चाहे वो हिंदू हो या मुस्लिम।
    हमें बस इतना करना है - अपनी आँखें खोलना।
    और याद रखना - हम सब एक ही देश के नागरिक हैं।

  • Image placeholder

    abhishek arora

    सितंबर 6, 2024 AT 21:28

    ये फैसला बहुत अच्छा है! भारत के संविधान के अनुसार धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं हो सकता! 🇮🇳
    हमें अपने आप को भारतीय नागरिक के रूप में देखना चाहिए - न कि मुस्लिम, हिंदू, या किसी और के रूप में!
    अगर कोई गरीब है - तो उसे आर्थिक सहायता दें - लेकिन आरक्षण नहीं!
    ये सब राजनीतिक दलों का खेल है! अब तो भारत को एक नए नागरिकता की जरूरत है! 💪🔥

  • Image placeholder

    Kamal Kaur

    सितंबर 6, 2024 AT 23:46

    मुझे लगता है ये फैसला बहुत जरूरी था।
    हम सब चाहते हैं कि अगर कोई गरीब है - तो उसे मदद मिले।
    लेकिन अगर ये मदद धर्म के आधार पर है - तो ये न्याय नहीं है।
    मैं आशा करता हूँ कि अब हम एक ऐसा तरीका ढूंढें जो सबके लिए न्यायसंगत हो।
    कोई भी नहीं चाहता कि कोई अपनी क्षमता के बावजूद पीछे रह जाए। 😊

  • Image placeholder

    Ajay Rock

    सितंबर 7, 2024 AT 11:22

    अरे यार! ये जो फैसला हुआ - वो तो बस एक धोखा है! जो लोग आरक्षण चाहते हैं - वो उन्हें देने वाले हैं।
    जो लोग नहीं चाहते - वो उन्हें लेने वाले हैं।
    ये सब बस एक खेल है।
    हम तो बस इंतजार कर रहे हैं - कि कौन जीतेगा।
    और जब जीत जाएंगे - तो वो अपने आप को न्यायी बताएंगे।
    लेकिन असल में - कोई न्याय नहीं है।
    बस एक नाटक है।

  • Image placeholder

    Lakshmi Rajeswari

    सितंबर 9, 2024 AT 09:56

    ये सब एक षड्यंत्र है! अमेरिका और ब्रिटेन ने भारत को तोड़ने के लिए ये फैसला करवाया है! वो चाहते हैं कि हम अपने आप को तोड़ लें! मुस्लिम समुदायों को हटाने का मकसद है - ताकि वो आगे न बढ़ सकें! ये तो नए तरह का अंग्रेजी राज है! 🕵️‍♀️💣

एक टिप्पणी लिखें