तसलीमा नसरिन ने बांग्लादेश की पाकिस्तान‑तरफ़ी पर दी कड़ी चेतावनी अक्तू॰, 3 2025

जब तसलीमा नसरिन, 1962 ने अपने X (पहले ट्विटर) पोस्ट में बांग्लादेश की नई विदेश नीति को ‘भारत अब दुश्मन’ कह कर तेज़ी से आलोचना की, तो पूरे दक्षिण एशिया के राज‑राजनीतिक समीक्षक चौकन्ना हो गए। 62 साल की इस लेखिका ने न सिर्फ भारत‑बांग्लादेश के ऐतिहासिक संबंधों को उजागर किया, बल्कि मौजूदा अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद युनुस पर भी गंभीर आरोप लगाए – उन्होंने नबेल शांति पुरस्कार को रद्द करने की अपील की।

पृष्ठभूमि: तसलीमा नसरिन का निरंकुश सफ़र

नसरिन को 1993 में अपने उपन्यास ‘लज्जा’ के कारण एक फातवा जारी किया गया था, जिसमें भारतीय हिन्दू परिवार पर मुसलमानों के हमले को दर्शाया गया था। 1994 में उस समय के शेख़ हसीना सरकार ने उन्हें देश से निष्कासित कर दिया। तब से वह स्वीडन, कोलकाता और अब नई दिल्ली में रह रही हैं, जहाँ उनका भारतीय रेजिडेंट परमिट हर साल नवीनीकरण के अधीन रहता है।

लंबे समय तक उन्होंने बांग्लादेशीय इस्लामी उग्रवाद और पितृसत्तात्मक कानूनी प्रथा के खिलाफ आवाज़ उठाई, जिससे उन्हें कई बार मारपीट, पुस्तक दंडित और सार्वजनिक धूमाधड़वानी का सामना करना पड़ा। यही कारण है कि आज वे बांग्लादेशी राजनीति को ‘अलग‑अलग धुंधली धुंआधार’ की तरह देखती हैं।

हालिया बयान: भारत‑पाकिस्तान‑बांग्लादेश त्रिकोण

5 अगस्त 2025 को, नसरिन ने लिखा: “बांग्लादेश अब भारत को दुश्मन मान रहा है, जबकि पाकिस्तान को छाती खोलकर गले लगा रहा है।” इस बयान के पीछे उनका दावा है कि वर्तमान अंतरिम सरकार पाकिस्तान के साथ रणनीतिक समझौते कर रही है, जिससे देश की आत्मनिर्भरता और सुरक्षा दोनों ही खतरे में पड़ रही हैं। उन्होंने कहा कि मुहम्मद युनुस ने ‘पाकिस्तानी सेना के पराजित सैनिकों के एजेंट’ बनकर बांग्लादेश को एक अराजक स्थिति में धकेल दिया है।

नसरिन के अनुसार, पिछले नौ महीनों में ‘विरोधी नेता और अल्पसंख्यक हिन्दू’ कई बार मारहूँ हुए, उनका घर जला दिया गया और अनगिनत लोग बिना मुक़दमे के जेल में फँसे हैं। उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि युनुस ‘हजारों लोगों को युद्ध की ओर धकेल रहा है’, जबकि बांग्लादेश की सैन्य क्षमता भारत के साथ किसी भी संघर्ष को झेल नहीं सकती।

उन्हें यह भी कहा गया कि बांग्लादेश के उद्योगों में लगातार हुई आतंकवादी हमले ने अर्थव्यवस्था को ‘धक्का’ दिया है, परन्तु सरकारी एजेंडा में कोई चुनाव या पुनर्स्थापना योजना नहीं है। इस बीच, भारत ने बांग्लादेश के लिए मानवीय सहायता और आर्थिक समर्थन जारी रखा है, जिससे नसरिन का कहना है कि भारत‑बांग्लादेश के पारस्परिक हितों पर “धूम मचा” रही है।

न्यू युनुस पर लहराती निंदा

नसरिन ने 1 मई 2025 को नबेल समिति को एक खुला पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने युनुस को ‘अविश्वास्य’ और ‘मानवाधिकार हननकर्ता’ कहा। उन्होंने यह भी कहा कि युनुस ने ग्रेमीन बैंक में काम करते हुए कर चोरी की और विदेशी फंड को अपने निजी व्यवसाय में उपयोग किया। ‘जब महिलाएँ माइक्रोलोन चुकाने में असमर्थ रहीं, तो ग्रेमीन बैंक के कर्मचारियों ने उनका घर तबाह कर दिया’ – यह दावा नसरिन ने पुश किया।

इस पत्र में वे कहती हैं, “युनुस के हाथ में शांति का प्रतीक नहीं, बल्कि हिंसा और बदला है।” उन्होंने नबेल समिति से अनुरोध किया कि वह ‘विश्व शांति के नाम’ अपने पुरस्कार को वापस लेन। इस माँग पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली है, परन्तु अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इसे ‘गंभीर’ कहा है।

बांग्लादेश के भीतर राजनीतिक माहौल

बांग्लादेश के भीतर राजनीतिक माहौल

अगस्त 2024 में, दोसाल के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को पदच्युत कर दिया गया और एक सैन्य‑समर्थित अंतरिम सरकार स्थापित हुई। युनुस, जो पहले ग्रेमीन बैंक के संस्थापक और नबेल laureate थे, इस नई सत्ता के प्रमुख नेता बने। कई विश्लेषकों का मानना है कि इस सरकार ने ‘धर्म‑राष्ट्रवाद’ को प्रमुख विचारधारा बनाया है, जिससे अल्पसंख्यक समुदायों, विशेषकर हिन्दुओं, पर अत्यधिक तनाव बढ़ा है।

इन घटनाओं के दौरान, तसलीमा नसरिन ने कहा कि ‘शेख़ हसीना और खलिदा ज़िया दोनों ने मेरा वापसी को रोक दिया, इस कारण मैं बांग्लादेश नहीं जा पाती’। उन्होंने फिर कहा कि दोनों महिलाओं के राजनैतिक कारनामे बांग्लादेशी उग्रवादियों को और अधिक साहस दे रहे हैं।

भविष्य की राह: क्या होगा अब?

नसरिन की सबसे बड़ी चिंता अब भारत में अपने रहने का परमिट न मिलना है। उनकी रेजिडेंस परमिट अभी रिन्यू किया गया है, परन्तु कई बार ‘तकनीकी कारणों’ से इसे रद्द किया गया था, जैसा कि 2017 में हुआ था। यदि यह परमिट नहीं मिलता, तो वे आशंका करती हैं कि “मैं मर जाऊँगी”। इस तनाव के बीच, बांग्लादेश में मानवाधिकार उल्लंघन की लहर नहीं रुकती, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से निरंतर दबाव बनता जा रहा है।

एक ओर जहाँ बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच आर्थिक समझौते की रिपोर्टें आती हैं, वहीं दूसरी ओर भारत‑बांग्लादेश परंपरागत व्यापार और जल‑संधि के लाभों को नहीं भूल रहा है। इस द्विध्रुवी स्थिति में, नसरिन का संदेश स्पष्ट है: “बिना शांति के कोई भी विकास संभव नहीं।” यदि अंतरिम सरकार राजनीतिक संवाद को नहीं अपनाती, तो आर्थिक पतन और सामाजिक अशांति दोनों हाथ में हाथ डालेंगे।

मुख्य बिंदु

  • तसलीमा नसरिन ने बांग्लादेश की पाकिस्तान‑तरफ़ी को ‘भारत को दुश्मन मानना’ कहा।
  • वह मुहम्मद युनुस के नबेल शांति पुरस्कार को रद्द करने की मांग कर रही हैं।
  • नसरिन ने अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर हुए अपराधों और उद्योगों पर आतंकवादी हमलों का हवाला दिया।
  • बांग्लादेश की वर्तमान सरकार को ‘धर्म‑राष्ट्रवादी’ और ‘जिहादी संगठनों’ के साथ मिलकर काम करने का आरोप।
  • नसरिन का भविष्य भारत‑न्यू दिल्ली में रेजिडेंस परमिट पर निर्भर, जबकि बांग्लादेश में उनके लिए कोई सुरक्षित वापसी नहीं।
Frequently Asked Questions

Frequently Asked Questions

तसलीमा नसरिन ने भारत‑बांग्लादेश संबंधों को लेकर क्या कहा?

उन्होंने लिखा कि बांग्लादेश अब भारत को दुश्मन मान रहा है और पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध बना रहा है, जबकि वास्तविक शक्ति संतुलन और आर्थिक सहयोग भारत के साथ ही बेहतर है।

मोहम्मद युनुस पर तसलीमा की मुख्य शिकायतें क्या हैं?

युनुस को उन्होंने भ्रष्टाचार, कर चोरी, ग्रेमीन बैंक के फंड का व्यक्तिगत उपयोग और मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाया है, साथ ही उन्होंने नबेल शांति पुरस्कार को रद्द करने की मांग की है।

बांग्लादेश में हाल के महीनों में अल्पसंख्यकों पर क्या घटनाएं घटित हुईं?

नसरिन के अनुसार, कई हिन्दू समुदाय के नेता और सामान्य नागरिकों को मारहूँ किया गया, उनके घर जला दिए गए और कई लोग बिना मुकदमे के जेल में फँसे हैं। इस दौरान आतंकवादी हमले उद्योगों को भी प्रभावित कर रहे हैं।

नसरिन के भारत में रहने का परमिट क्यों संकट में है?

उनका वीज़ा हर साल नवीनीकरण के अधीन है और अब तक तकनीकी कारणों से दो बार रद्दीकरण का सामना करना पड़ा है। अगर यह नहीं मिलता, तो वह बांग्लादेश लौटने की चाह रखती थीं, लेकिन दोनों देशों की सरकारों ने उन्हें वापस नहीं दिया।

भविष्य में बांग्लादेश‑भारत‑पाकिस्तान त्रिकोण के लिए क्या संभावनाएँ हैं?

अगर बांग्लादेश अपनी विदेश नीति को पुनः संतुलित नहीं करता और पाकिस्तान के साथ करीब होता है, तो भारत के साथ आर्थिक व जल‑संधि पर तनाव बढ़ सकता है। अंतरिम सरकार के भीतर यदि लोकतांत्रिक चुनाव नहीं हुए, तो आंतरिक अस्थिरता भी बढ़ेगी, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा जोखिम भी बढ़ेगा।

13 टिप्पणि

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    Arushi Singh

    अक्तूबर 4, 2025 AT 19:32

    ये सब बातें तो सुनी हैं पर असली सवाल ये है कि जब हम अपने देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा नहीं कर पा रहे, तो हम किसी और के राजनीतिक बयानों पर इतना फोकस क्यों कर रहे हैं? तसलीमा के बयानों में कुछ सच है, पर उनका टोन अक्सर अतिशयोक्ति से भरा होता है। हमें अपने घर की सफाई करनी चाहिए, न कि बाहर के लोगों को गलत ठहराना।
    हमारी अपनी राजनीति में भी तो बहुत कुछ खराब है, पर हम उस पर चुप क्यों हैं?

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    Rajiv Kumar Sharma

    अक्तूबर 6, 2025 AT 17:56

    ये जो नसरिन बोल रही हैं, वो तो एक ऐसी आवाज़ है जो हमने भारत में बहुत दिनों से नहीं सुनी। लोग उन्हें भड़काऊ कहते हैं, पर क्या उनकी आवाज़ बंद कर देना ही समाधान है? जब तक हम अपने देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अत्याचार को नहीं स्वीकारेंगे, तब तक वो बाहर से चिल्लाती रहेंगी।
    क्या हम उनकी आवाज़ को दबाना चाहते हैं या उसकी जड़ों को समझना?

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    Jagdish Lakhara

    अक्तूबर 6, 2025 AT 20:25

    महोदया, इस प्रसंग के संदर्भ में अत्यंत गंभीर रूप से ध्यान देने योग्य बात यह है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के द्वारा पाकिस्तान के साथ रणनीतिक साझेदारी का विस्तार, भारत के लिए एक भू-राजनीतिक चुनौती के रूप में प्रस्तुत होता है। इसके अतिरिक्त, मुहम्मद युनुस के व्यक्तिगत आर्थिक लेन-देन के मामले में जिन आरोपों का उल्लेख किया गया है, वे अंतरराष्ट्रीय न्याय एवं नैतिकता के सिद्धांतों के विरुद्ध हैं।
    इस प्रकार, इस मुद्दे का विश्लेषण न केवल राजनीतिक, बल्कि नैतिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी किया जाना चाहिए।

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    Pramod Lodha

    अक्तूबर 7, 2025 AT 02:10

    सुनो, तसलीमा नसरिन एक ऐसी औरत है जिसने अपनी जान खोने का डर नहीं माना। उसने अपनी किताबें लिखीं, जिन्हें जलाया गया, उसे निकाल दिया गया, फिर भी वो बोलती रही।
    अगर हम उसकी आवाज़ को दबा देंगे, तो हम खुद को बदल रहे होंगे।
    हमारी बड़ी बात ये है कि हम उसके बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन हमारे देश में जो बच्चे आज भी अपने घरों से निकाले जा रहे हैं, उनके बारे में कोई बात नहीं होती।
    हम उसे देख रहे हैं, लेकिन अपने आप को नहीं।
    हमें बदलना होगा।

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    Neha Kulkarni

    अक्तूबर 8, 2025 AT 13:51

    तसलीमा के बयानों को लेकर जो भी बहस हो रही है, उसकी असली गहराई ये है कि हम एक ऐसे व्यक्ति के साथ कैसे बातचीत करते हैं जो हमारे सामाजिक और धार्मिक नियमों को चुनौती देता है।
    हम उसे गलत ठहराने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या हमने कभी उसके दर्द को समझने की कोशिश की है?
    वो अपने देश से निकाली गई, उसकी किताबें जलाई गईं, उसे मारने की कोशिश की गई।
    अब वो एक विदेशी देश में रह रही है, और अपने रेजिडेंस परमिट के लिए लड़ रही है।
    क्या हम इसे बस एक राजनीतिक बयान मान लेंगे, या हम इसे एक जीवन की आवाज़ के रूप में लेंगे?
    हमें इस बात को समझना होगा कि शांति के लिए बोलने वालों को दबाना नहीं, सुनना चाहिए।

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    Sini Balachandran

    अक्तूबर 10, 2025 AT 09:00

    क्या ये सब वाकई सच है? या ये सिर्फ एक बड़ी राजनीतिक धोखेबाज़ी है? क्या हम वाकई जानते हैं कि युनुस ने क्या किया या नहीं? या हम सिर्फ एक आवाज़ को बढ़ावा दे रहे हैं जो हमें अपने आप को बेहतर लगाने में मदद करती है?
    जब तक हम अपने आप को नहीं जानेंगे, तब तक हम दूसरों को नहीं जान पाएंगे।

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    Sanjay Mishra

    अक्तूबर 11, 2025 AT 11:20

    ये तो एक ऐसा ड्रामा है जिसमें सब कुछ है - फातवा, नबेल पुरस्कार, पाकिस्तान का जादू, हिंदू घरों की आग, और एक बूढ़ी लेखिका जो दुनिया को चिल्ला रही है! अगर ये एक फिल्म होती तो ऑस्कर तो बनता ही था!
    पर असलियत ये है कि ये सब वाकई हो रहा है।
    हम इसे ड्रामा समझ रहे हैं, लेकिन ये एक जिंदा आत्मा की चीख है।
    मैं तो अभी तक ये सोच रहा हूँ कि अगर ये लड़की अपने घर में बैठकर लिख रही होती, तो क्या हम उसे इतना ध्यान देते?

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    Ashish Perchani

    अक्तूबर 12, 2025 AT 21:24

    अति गंभीर रूप से विचार करने योग्य विषय। बांग्लादेश के अंतरिम सरकार द्वारा उठाए गए निर्णयों का भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इसके अलावा, नबेल पुरस्कार के विवादित प्रयोग के मामले में, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक नैतिक जिम्मेदारी है।
    इस प्रकार, तसलीमा नसरिन के बयानों को व्यक्तिगत आक्रमण के रूप में नहीं, बल्कि एक नागरिक जागरूकता के रूप में देखा जाना चाहिए।

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    Dr Dharmendra Singh

    अक्तूबर 14, 2025 AT 16:58

    मैं तो सिर्फ इतना कहूंगा... जो आदमी अपने देश से निकाल दिया गया है, और फिर भी बोलता है... वो असली हीरो है।
    हम लोग यहाँ बैठकर टिप्पणियाँ कर रहे हैं, पर उसके पास कोई बचाव नहीं है।
    मुझे उसकी ताकत पसंद है।
    ❤️

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    sameer mulla

    अक्तूबर 14, 2025 AT 19:35

    ये तो बस एक बूढ़ी औरत है जिसे किसी ने बाहर निकाल दिया और अब वो बदला लेने की कोशिश कर रही है! युनुस को नबेल मिला था क्योंकि उसने लाखों महिलाओं की जिंदगी बदली! तसलीमा ने क्या किया? कुछ लिखा, और फिर आंखें बंद करके भारत में आ गई!
    वो अपने देश के खिलाफ बोल रही है क्योंकि उसे लगता है कि भारत उसे सुरक्षित रखेगा!
    मैं उसे अपमानित करता हूँ।
    🤬

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    Prakash Sachwani

    अक्तूबर 15, 2025 AT 00:21

    तसलीमा नसरिन के बारे में बहुत बातें हो रही हैं लेकिन क्या हम वाकई जानते हैं कि बांग्लादेश में क्या हो रहा है
    मुझे लगता है कि हमें बस ये देखना चाहिए कि भारत क्या कर रहा है

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    Pooja Raghu

    अक्तूबर 15, 2025 AT 06:09

    ये सब अमेरिका और इज़राइल की योजना है! तसलीमा नसरिन को बांग्लादेश से निकालने के बाद उसे भारत में बसाया गया ताकि वो भारत के खिलाफ बांग्लादेश के खिलाफ अफवाह फैला सके!
    ये तो एक बड़ा गुप्त अभियान है! जानते हो क्या हो रहा है? जानते हो ये सब क्यों हो रहा है?
    कोई नहीं बता रहा।

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    Pooja Yadav

    अक्तूबर 15, 2025 AT 07:39

    मैं तो बस इतना कहूंगी कि हम सब एक दूसरे को बहुत जल्दी गलत ठहरा देते हैं
    तसलीमा के बारे में बहुत कुछ बोला जा रहा है लेकिन क्या हमने कभी उसकी किताब पढ़ी है
    या हम सिर्फ उसके बारे में जो सुनते हैं उसी पर विश्वास कर लेते हैं
    हम जब अपने दिल से सुनते हैं तब असली बातें समझ में आती हैं

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