योगी आदित्यनाथ का मल्लिकार्जुन खड़गे पर तीखा हमला, सांप्रदायिक तुष्टिकरण की राजनीति पर उठाए सवाल नव॰, 13 2024

योगी आदित्यनाथ की मल्लिकार्जुन खड़गे पर आलोचना

हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पर तीखा हमला करते हुए कहा कि खड़गे ने राष्ट्रीय एकता से अधिक सांप्रदायिक तुष्टिकरण की राजनीति को प्राथमिकता दी है। महाराष्ट्र के अचलपुर में एक रैली के दौरान योगी आदित्यनाथ ने यह आरोप खड़गे के 'बातेंगे तो कटेंगे' नारे की प्रतिक्रिया में लगाया। इस नारे की खड़गे ने पहले तीखी आलोचना की थी, और आदित्यनाथ को सलाह दी थी कि एक सच्चे संन्यासी के रूप में उन्हें कभी ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

खड़गे के बचपन की घटना का संदर्भ

आदित्यनाथ ने खड़गे के बचपन की एक दुखद घटना का उल्लेख किया, जो 1948 में हैदराबाद की राजनीतिक अशांति के दौरान हुई थी। उन्होंने बताया कि खड़गे के गांव को हैदराबाद के निज़ाम के रजाकारों ने जला दिया था और इस हमले में उनके परिवार के कई सदस्यों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस घटना में खड़गे की माँ और बहन की भी हत्या कर दी गई थी। आदित्यनाथ ने खड़गे को इस सच्चाई को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया, और कहा कि खड़गे शायद इस सच्चाई को बताने से बचते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनकी मुस्लिम वोटर्स की अपील पर असर पड़ सकता है।

महा विकास आघाड़ी पर आरोप

योगी आदित्यनाथ ने विपक्षी महा विकास आघाड़ी गठबंधन पर भी आरोप लगाए, यह कहते हुए कि उन्होंने महाराष्ट्र को 'लव जिहाद' और 'लैंड जिहाद' का केंद्र बना दिया है। आदित्यनाथ का कहना था कि इस प्रकार की राजनीति राष्ट्रीय एकता को कमजोर करती है। उन्होंने खड़गे की विचारधारा को उनके परिवार की 1948 की घटना से जोड़ते हुए आलोचना की और कहा कि खड़गे की राजनीति का आधार कुछ और नहीं बल्कि वही सांप्रदायिक तुष्टिकरण है जिसका उन्होंने सामना किया था।

सच्चे संन्यासी की परिभाषा पर बहस

खड़गे ने कुछ दिन पहले आदित्यनाथ पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि एक सच्चा योगी कभी इस तरह की भाषा का उपयोग नहीं करेगा। खड़गे का दावा था कि ऐसे बयान सिर्फ आतंकवादियों द्वारा दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग 'गेरुआ' वस्त्र धारण करते हैं और सिर मुंड़वाते हैं, अगर वे वास्तव में सच्चे संन्यासी हैं, तो उन्हें राजनीति से दूर रहना चाहिए। खड़गे का कहना था कि संन्यासी वही है जो जनता की सेवा में आत्मत्याग करे और राजनीति लड़ाई नहीं बल्कि सेवा का माध्यम हो।

राजनीतिक हलचलों का पुनर्मूल्यांकन

इन आरोप-प्रत्यारोपों ने भारतीय राजनीति में नए सिरे से चर्चा का मंच तैयार कर दिया है। आदित्यनाथ और खड़गे के बीच की यह वाकयुद्ध प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार राजनीतिक पार्टियां अपने मतदाताओं के धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं को भुनाने की कोशिश करती हैं। राष्ट्र की एकता और अखंडता के समक्ष, वर्तमान स्थिति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक नई परीक्षा के रूप में देखी जा रही है।

इन सियासी चर्चाओं में आम जनता की भी गहरी दिलचस्पी है। हर दिन नए दावों और आरोपों के साथ, यह स्पष्ट हो रहा है कि भारतीय राजनीति किसी भी कीमत पर स्थिर नहीं है। राजनेताओं का इन हालातों का सामना करना और अपने आप को जनसेवा के माध्यम के रूप में प्रस्तुत करना आवश्यक होगा। क्या जनता इन विचारधाराओं के आधार पर नेताओं को चुनने के लिए प्रेरित होगी या वे अधिक व्यावहारिक और विकासशील दृष्टिकोण की ओर देखेंगे? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है जिसे भारतीय लोकतंत्र जल्द ही तय करेगा।