आजकी खबरों में हमें अक्सर दिव्यांगजन से जुड़ी नई सरकारी योजना या न्यायिक निर्णय मिलते हैं, लेकिन वास्तविक बदलाव जमीन पर तब तक नहीं दिखता जब तक बुनियादी बुनियाद नहीं मजबूत हो। उदाहरण के तौर पर, कई स्कूल अभी भी शारीरिक बाधाओं को हटाने में पिछड़े हैं, जिससे समावेशी शिक्षा का लक्ष्य अधूरा रहता है। इसी तरह, निजी कंपनियों में रोजगार के लिये आरक्षण या अनुकूल कार्यस्थल की व्यवस्था अभी सीमित है, जबकि सरकारी आंकड़े बताते हैं कि योग्य दिव्यांगजन का एक बड़ा हिस्सा बेरोजगार है। सुलभता के मामले में सार्वजनिक स्थानों में रैंप, टैक्टाइल संकेत और ऑडियो सिस्टम की कमी बड़ी बाधा बनती है। स्वास्थ्य सेवा में विशेष उपचार, रीहैबिलिटेशन सेंटर और बीमा कवरेज अक्सर शहर तक सीमित रह जाता है, जिससे ग्रामीण इलाकों के दिव्यांगजन को उचित देखभाल नहीं मिल पाती।
इन समस्याओं को हल करने के लिये एक समन्वित दृष्टिकोण जरूरी है। पहले तो नीति निर्माताओं को स्थानीय स्तर पर योजना का क्रियान्वयन मॉनिटर करना चाहिए, जिससे समावेशी शिक्षा के लिये विशेष वर्गीकरण, अनुकूल पाठ्यक्रम और प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध हों। दूसरी ओर, उद्योग जगत को रोजगार के लिये स्किल-मैपिंग और वर्कप्लेस एडेप्टेशन में निवेश बढ़ाना चाहिए, क्योंकि उचित प्रशिक्षण के बाद दिव्यांगजन कई कार्य क्षेत्रों में सराहनीय योगदान दे सकते हैं। सुलभता को बढ़ाने के लिये नगरपालिका को रैंप, एलेवेटर और बैनर जैसे बुनियादी तत्वों को अनिवार्य करना चाहिए, जबकि डिजिटल सुलभता के लिये वेबसाइट और एप्लिकेशन में स्क्रीन रीडर सपोर्ट चाहिए। स्वास्थ्य सेवा में सार्वजनिक-निजी साझेदारी मॉडल अपनाकर दूरस्थ क्षेत्र में टेली-हेल्थ और मोबाइल क्लिनिक चलाए जा सकते हैं, जिससे इलाज तक पहुँच आसान हो।
इन विचारों को समझते हुए नीचे दिया गया लेख संकलन आपको विभिन्न पहलुओं का विस्तृत अवलोकन देगा। आप नवीनतम सरकारी योजनाओं, सफलता की कहानियों और व्यावहारिक टिप्स के बारे में पढ़ेंगे, जो दिव्यांगजन के जीवन को बेहतर बनाने में मदद करेंगे। आइए, अब आगे के लेखों में गहराई से देखें कि कैसे हम सब मिलकर एक अधिक सुलभ और समावेशी भारत की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।
MoSJE ने 21 जून 2025 को 'एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य' थीम के साथ 3,400 दिव्यांगजनों को योग सत्र कराकर अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को यादगार बनाया, जिससे स्वास्थ्य और सामाजिक समरसता में नयी दिशा मिली.
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