When working with घृणा भाषण, ऐसे शब्द या बयानों को कहा जाता है जो जाति, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता या किसी अन्य सामाजिक पहचान के आधार पर नफ़रत या हिंसा को बढ़ावा देते हैं. Also known as हेट स्पीच, it often appears in राजनीति, धर्म‑संघर्ष या इंटरनेट पर। इस विषय को समझने के लिए पहले दो प्रमुख जुड़े अवधारणाओं को देखना ज़रूरी है: भारतीय संविधान, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) और सार्वजनिक व्यवस्था की सुरक्षा के बीच संतुलन तय किया गया है और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म, जैसे फ़ेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब जहाँ घृणा भाषण जल्दी फैलता है और नियंत्रण कठिन होता है। इन दोनों के बीच का टकराव ही घृणा भाषण को आपराधिक दंड की राह दिखाता है, क्योंकि अदालतें अक्सर सार्वजनिक शांति के लिए प्रतिबंध लगाती हैं।
घृणा भाषण का सामाजिक असर बुनियादी स्तर पर दो‑तीन चीज़ों में देखी जा सकती है। पहला, यह समूहों के बीच अविश्वास पैदा करता है, जिससे दंगे और असहयोग बढ़ते हैं। दूसरा, यह सामाजिक बाधाएँ बनाता है—जिनका प्रतिकार करने वाले अक्सर रोजगार, शिक्षा या स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हो जाते हैं। तीसरा, डिजिटल युग में इसका तेज़ी से फ्यूज़न सोशल‑मीडिया एल्गोरिद्म को बदले हुए फीड में दिखाता है, जो नव‑उत्पन्न फैंगी समूहों को और मजबूत बनाता है। इस तरह के चक्र को तोड़ने के लिए सिर्फ़ कड़े कानून नहीं, बल्कि शिक्षा, मीडिया साक्षरता और सकारात्मक संवाद भी जरूरी होता है।
कानून के लिहाज़ से भारत ने कई प्रावधान जोड़े हैं। IPC की धारा 153A, 295A और 505(2) सीधे‑सीधे घृणा भाषण को दंडनीय बनाते हैं। साथ‑साथ, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A (अब हट गया) ने ऑनलाइन एंकर को नियन्त्रित किया था, और अब सोशल‑मीडिया कंपनियों को अपनी नीति‑सिद्धियों में “हेट-स्पीच” को ब्लॉक करने की ज़िम्मेदारी दी गई है। इस प्रकार आपराधिक दंड, जुर्माना, जेल की सज़ा या दोनों का संयोजन, अक्सर इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए लागू होते हैं। हाल के मामलों में, न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि भाषण की आज़ादी निरंकुश नहीं है; जब शब्द समूहों की सुरक्षा को खतरा बनाते हैं, तो न्याय का हाथ बँध जाता है।
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर घृणा भाषण की पहचान और हटाने की प्रक्रिया तकनीकी और नैतिक दो‑स्तरीय जटिलता रखती है। मशीन‑लर्निंग एल्गोरिद्म तेज़ी से संदिग्ध कंटेंट को फ़्लैग कर सकते हैं, पर अक्सर वर्गीकरण में गलती होती है, जिससे सही‑संदेश भी ब्लॉक हो जाते हैं। इसलिए कई प्लेटफ़ॉर्म ने मानव मॉडरेटर के साथ संगति बनाए रखी है, और उपयोगकर्ताओं को रिपोर्ट करने की सुविधा दी है। इस कदम से ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म, उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा और अभिव्यक्ति की सीमा दोनों को संतुलित करने का प्रयास करते हैं।
सार में, घृणा भाषण एक सामाजिक‑कानूनी मुद्दा है, जिसका संतुलन अभिव्यक्ति की आज़ादी और सार्वजनिक शांति के बीच बनता है। नीचे दी गई समाचार‑सूची में आप देखेंगे कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों—राजनीति, खेल, तकनीक और संस्कृति—में घृणा भाषण के उदाहरण सामने आए, और कैसे कोर्ट, सरकार या प्लेटफ़ॉर्म ने उनका जवाब दिया। इन वास्तविक मामलों को पढ़कर आप यह समझ पाएँगे कि शब्दों की शक्ति कितनी बड़ी है और इसे कैसे जिम्मेदारी से प्रयोग किया जा सकता है।
CJP ने 20 मई 2022 को यूट्यूब की घृणा‑भाषण वाली वीडियो हटाने की मांग की, जिसके बाद प्लेटफ़ॉर्म ने 200+ वीडियो हटाए और कई चैनल बंद किए।
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