जब हम बात करवा चौथ, विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और कल्याण के लिये पूरित किया जाने वाला पूर्ण चंद्रवाक्य व्रत. इसे कभी‑कभी कुंवारी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन व्रत, सुबह से लेकर चाँद देखे जाने तक बिना भोजन के रखा जाता है और शाम को पूजा, सूर्यास्त के बाद चाँद को अर्घ्य देने की रस्म की जाती है। अक्सर महिलाएँ सूर्यास्त, व्रत के समाप्ति के समय की प्रमुख घटना को देख कर सजावट करती हैं।
इस व्रत की शुरुआत सुबह स्नान से होती है, जिसमे करवा चौथ के लिए खास कर तैयार किया गया हल्दी‑चीनी वाला पानी उपयोग किया जाता है। स्नान के बाद महिला परिवार के बड़े सदस्यों के हाथों में बना मीठा सोहला खाती है – यह ऊर्जा को बनाये रखने का पहला कदम माना जाता है। फिर पूरे दिन बिना खाए पानी पीती रहती है, सिवाय एक घूँट के जो अक्सर ओले या अर्ली‑मॉर्निंग फ्रूट जूस के रूप में लिया जाता है। इस दौरान कई घरों में घर में बने ‘फोकरी’ (सजाए हुए दीप) के पास बैठकर कथा सुनना या गाने गाना आम प्रथा है। व्रत तोड़ने का मुख्य क्षण चाँद देखे जाने के बाद आता है। पारिवारिक माहौल में महिलाएँ अपने पति को अर्घ्य देती हैं, फिर दोनों मिलकर कोयले में से तैयार की गई मिठाई खाते हैं। इस मीठी समाप्ति को “अर्थवेदना” कहा जाता है, जो जीवन में मीठे पलों का प्रतीक है।
आजकल कई युवा जोड़े करवा चौथ को सोशल मीडिया पर लाइव स्ट्रीम करके मनाते हैं। यह बदलाव रिवाज़ की परम्परा को नई पीढ़ी तक पहुँचाने में मदद करता है, लेकिन मूल उद्देश्य – पति की सेहत की कामना – वही रहता है। साथ ही, कई शहरों में इस दिन विशेष मेन्यू वाले रेस्टोरेंट खुले रहते हैं, जहाँ हल्का सूप, सलाद और फिश‑कोफ़्ता जैसी व्यंजनों को व्रत‑सुविधाजनक रूप से पेश किया जाता है। इस तरह के आधुनिक विकल्पों ने यह दिखाया है कि परम्परा और सुविधा दोनों साथ चल सकते हैं। उत्तरी भारत में करवा चौथ का इतिहास पाँचवीं शताब्दी के वैदिक ग्रंथों से जुड़ा माना जाता है, जबकि दक्षिण में यह “कांजवैक” नाम से अलग रूप में मनाया जाता है। दोनों में मुख्य समानता यह है कि महिलाएँ अपने जीवनसाथी के लिए अर्पण करती हैं, पर रीति‑रिवाज़ में फोकरी के आकार, साइड‑डिश और गीतों में अंतर रहता है। इसमें अंतर को समझना पूरे भारत में सांस्कृतिक विविधता को उजागर करता है। हर साल, जैसे ही अष्टमी की रात्रि नजदीक आती है, बाजारों में लाल साड़ी, कंगन, पायल और मेहंदी के स्टॉल भर जाते हैं। महिलाएँ अपनी पसंदीदा रंग की साड़ी चुनती हैं, अक्सर लाल‑गुलाबी या पन्ना‑नायलॉन मिश्रण। मेहंदी के डिज़ाइन अब पारम्परिक बिंदु‑बिंदु से हट कर फ़ुल‑पैटर्न और जटिल रेखाओं तक बढ़ गए हैं, जिससे तस्वीरें इंस्टाग्राम पर शेयर करना फ्रीका बन गया है। करवा चौथ का सामाजिक पहलू भी कम नहीं है। कई गाँव में इस दिवस को साथ‑साथ मनाकर, महिलाएँ एक-दूसरे की सहायता करती हैं, जबकि बुजुर्ग महिलाएँ अपने अनुभव साझा करके नई पीढ़ी को सिखाती हैं। इस सामुदायिक सहयोग ने महिला सशक्तिकरण को एक नया आयाम दिया है – व्रत का पालन सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता का प्रतीक बन गया है। रिवाज़ों में अक्सर फोकरी, सजाया हुआ दीप जिसमें दीया और फूल रखे जाते हैं का प्रमुख स्थान होता है। फोकरी को सजाते समय महिलाएँ चाँद के आकार के समान मोटी पर्ची (जुले) डालती हैं, जो अर्घ्य के दौरान चाँद के प्रकाश को प्रतिबिंबित करती है। यह छोटा लेकिन महत्वपूर्ण आइटम व्रत‑समाप्ति को आध्यात्मिक रूप से सुदृढ़ बनाता है। यदि आप पहली बार करवा चौथ का पालन कर रही हैं या इस परंपरा के बारे में और जानना चाहते हैं, तो कुछ बुनियादी टिप्स मददगार रहेंगे: 1) व्रत के दौरान हल्का फलों का रस रखें, 2) ऊर्जा बनाए रखने के लिये मधु‑अदरक का पानी पीएँ, 3) झटके से बचने के लिये आरामदायक कपड़े पहनें, 4) अपने पति के साथ संवाद बनाए रखें, क्योंकि यह रिवाज़ आपसी विश्वास को भी गहरा करता है। इस टैग पेज पर आप करवा चौथ से जुड़ी ताज़ा खबरें, ऐसे लेख व गाइड पाएँगे जो आपको विस्तृत इतिहास, रिवाज़, फैशन और आधुनिक ट्रेंड्स तक पहुंचाते हैं। नीचे प्रस्तुत लेखों में आप व्रत‑कैसे‑करें, फोकरी‑डिज़ाइन, और आज के सोशल‑मीडिया‑इफेक्ट जैसी विषय-वस्तु पाएँगे, जिससे आपका करवा चौथ अनुभव और भी यादगार बन सके।
करवा चौथ 2025, 10 अक्टूबर को उत्तर भारत में मनाया जाएगा; राजस्थान के शहरों में चाँद देखे जाने का समय 8:20‑8:25 PM IST बताया गया, जबकि पूजा मुहूर्त 6:04‑7:18 PM IST है।
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