जब हम प्रतिरक्षा सहिष्णुता, कानूनी और संवैधानिक व्यवस्था में वह सिद्धांत है जिससे कुछ व्यक्तियों या संस्थानों को विशेष सुरक्षा या अधिकार प्राप्त होते हैं. Also known as कानूनी प्रतिरक्षा, it provides shield against certain legal actions. यह अवधारणा कई उप‑प्रकारों में विभाजित होती है, जैसे संवैधानिक प्रतिरक्षा, डिप्लोमैटिक प्रतिरक्षा, सार्वभौमिक प्रतिरक्षा और न्यायिक प्रतिरक्षा. ये सभी प्रकार मिलकर यह तय करते हैं कि कब और कैसे किसी को अदालत में बुलाया जा सकता है या नहीं।
पहला पहलू है व्याप्ति का दायरा‑ यह निर्धारित करता है कि कौन‑से कार्य या निर्णय प्रतिरक्षा के दायरे में आते हैं। संवैधानिक प्रतिरक्षा अक्सर संसद के सदस्यों को उनके भाषण या मतदान के दौरान कानूनी मुकदमे से बचाती है, जिससे लोकतांत्रिक बहस खुली रह सके। दूसरी ओर डिप्लोमैटिक प्रतिरक्षा विदेशियों को उनके कूटनीतिक कार्यों के दौरान आपराधिक या नागरिक मुकदमे से बचाती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में स्थिरता बनी रहे। सार्वभौमिक प्रतिरक्षा राज्य को विदेश में अपनी संपत्तियों या गतिविधियों के लिए मुकदमे से बचाव देती है, जबकि न्यायिक प्रतिरक्षा न्यायालय के अधिकारियों को स्वतंत्र निर्णय लेने में मदद करती है, चाहे वह निर्णय लोकप्रिय न भी हों।
दूसरा पहलू है शर्तें और सीमाएँ‑ बहुतेरे मामलों में प्रतिरक्षा पूर्ण नहीं होती, बल्कि यह ‘अपराध नहीं’ या ‘सार्वजनिक हित में कार्य’ जैसी शर्तों से बाँधती है। उदाहरण के तौर पर, यदि एक सांसद भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप में फँसता है, तो संसद द्वारा उत्पन्न विशेष प्रतिबंधों के बाद भी अदालतें उस पर कार्रवाई कर सकती हैं। इसी तरह, डिप्लोमैट को गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन या हार्ड अपराधों से न्यायालय में लाया जा सकता है, बशर्ते उसके होस्ट देश ने राजनैतिक समाधान नहीं दिया हो।
तीसरा पहलू है समीक्षा और निरस्तीकरण‑ भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार प्रतिरक्षा के दायरे को परिभाषित किया है। हालिया घटना में सुप्रीम कोर्ट के सत्र में एक वकील ने जूता फेंकने की कोशिश की, जिससे बी.आर. गवई को बचाव में समर्थन मिला और बार काउंसिल ने वकील को निलंबित कर दिया। इस केस ने यह दिखाया कि जब कोई कार्य दर्शनीय और अनुशासनहीन हो, तो प्रतिरक्षा के दायरे को भी सीमित किया जा सकता है। इसके अलावा, न्यायिक प्रतिरक्षा को ‘उदार या सजग’ सिद्धांतों के तहत परखा जाता है, जिससे न्यायिक स्वतंत्रता और जवाबदेही दोनों को संतुलित किया जाता है।
इन सभी बिंदुओं से स्पष्ट होता है कि प्रतिरक्षा सहिष्णुता सिर्फ एक कानूनी जार्गन नहीं, बल्कि लोकतंत्र, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय कानून में संतुलन बनाये रखने का साधन है। जब आप नीचे दी गई खबरों को पढ़ेंगे, तो देखेंगे कि कैसे विभिन्न प्रकार की प्रतिरक्षा वास्तविक घटनाओं में काम करती है, कौन‑सी सीमाएँ लगती हैं, और कौन‑से मामलों में उन्हें हटाया जाता है। अब चलिए इस टैग से जुड़े लेखों की सूची की ओर बढ़ते हैं, जहाँ आपको प्रतिरक्षा के विविध पहलुओं पर गहरी समझ मिलेगी।
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